नीतीश कुमार बिहार की राजनीति के असली “चाणक्य”

- Reporter 12
- 14 Oct, 2025
मोहम्मद आलम
राजनीति में कुछ नेता चाल चलते हैं, और कुछ चाल की दिशा ही बदल देते हैं। बिहार में आज वही हो रहा है। दिल्ली में बैठे रणनीतिकार जहाँ “डैमेज कंट्रोल” में जुटे हैं, वहीं पटना से निकली एक शतरंज की चाल ने पूरे समीकरण उलट दिए हैं — और उस चाल के सूत्रधार हैं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार।दरअसल, बीजेपी ने सत्ता की सीढ़ी तो नीतीश के कंधों पर रखकर चढ़ी, लेकिन लगाम अब पूरी तरह उन्हीं के हाथ में है। नीतीश कुमार ने साफ़ संदेश दे दिया है — “लक्ष्मण रेखा यहीं तक है, इसके आगे बढ़े तो समझो खेल बदल जाएगा।”
चालें और जवाबी चालें
राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि बीजेपी की एक गुप्त रणनीति थी — एनडीए के भीतर ही नीतीश का “पत्ता काटना”। लेकिन नीतीश के “गुप्तचरों” ने यह पूरा खेल पहले ही भांप लिया। नतीजा ये हुआ कि तय प्रेस कॉन्फ्रेंस अचानक रद्द करवा दी गई, और सूत्रों के अनुसार उसी रात लालू यादव और नीतीश कुमार के बीच “डायरेक्ट टॉक” शुरू हो गई।
वीआईपी का समीकरण और सत्ता का लालच
राजनीति का एक और दिलचस्प अध्याय मुकेश सहनी के रूप में सामने आया। अगर वीआईपी को 18 सीटें मिल जातीं, तो विपक्ष का समीकरण 170 के आसपास पहुँच जाता — और डिप्टी सीएम का सपना साकार होने का रास्ता खुल जाता। लालू यादव ने सहनी को 10 सीटें और 8 उम्मीदवार आरजेडी के प्रतीक पर लड़ाने की पेशकश कर के चाल समझदारी से चली।
बीजेपी और कांग्रेस — एक जैसी मुश्किलें
नीतीश–बीजेपी समीकरण में जितना तनाव दिखा, लगभग वैसा ही हाल आरजेडी–कांग्रेस रिश्ते का है। कांग्रेस बिहार में अपने जनाधार के लिए संघर्ष कर रही है, लेकिन वामपंथी दलों को साथ रखना आरजेडी की मजबूरी भी बन गई है। यानी दोनों बड़े गठबंधन अंदर से दरार झेल रहे हैं।
अमित शाह की एंट्री, लेकिन पटना की हवा अलग
अब खबर यह है कि गृह मंत्री अमित शाह जल्द ही पटना पहुंच सकते हैं। पार्टी के कुछ नेताओं को दिल्ली में फटकार लगाई गई है, और चुनाव चिन्ह बाँटने के सारे फैसले दोबारा समीक्षा में चले गए हैं। संकेत साफ़ हैं बीजेपी “डैमेज कंट्रोल मोड” में है।
निष्कर्ष — नीतीश की चाल, दिल्ली की बेचैनी
बिहार की राजनीति में आज जो कुछ भी घट रहा है, वह इस बात का सबूत है कि “सत्ता का असली रिमोट” अभी भी पटना में है, दिल्ली में नहीं।
नीतीश कुमार ने एक बार फिर साबित किया है कि बिहार में चुनावी गणित नहीं, राजनीतिक बुद्धिमत्ता तय करती है कि किसके सिर पर ताज रहेगा।
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